Kāmāyanī ke panneNavayuga Granthāgāra, 1962 - Всего страниц: 207 |
Результаты поиска по книге
Результаты 1 – 3 из 31
Стр. 19
... सत्य के मार्ग से होती हुई अखंड आनन्द में तन्मय हुई है । शुद्ध पौराणिक और वैदिक इतिहास को दृष्टि में रख कर ही कवि ने अपने महाकाव्य ...
... सत्य के मार्ग से होती हुई अखंड आनन्द में तन्मय हुई है । शुद्ध पौराणिक और वैदिक इतिहास को दृष्टि में रख कर ही कवि ने अपने महाकाव्य ...
Стр. 25
... सत्य का उद्घाटन करता है । कवि का सम्बन्ध आध्यात्मिक जगत से होता है— उसके सम्मुख एक आदर्श होता है । भौतिक जगत की सीमा को लांघ कर कवि ...
... सत्य का उद्घाटन करता है । कवि का सम्बन्ध आध्यात्मिक जगत से होता है— उसके सम्मुख एक आदर्श होता है । भौतिक जगत की सीमा को लांघ कर कवि ...
Стр. 46
... सत्य और सौन्दर्य - सत्य होती हैं न कि पहाड़ी स्त्रोतस्विनी के अल्हड़पन , चंचलपन , खलखलपन में , ( यहाँ पर मैं उन विद्वान भारतीय ...
... सत्य और सौन्दर्य - सत्य होती हैं न कि पहाड़ी स्त्रोतस्विनी के अल्हड़पन , चंचलपन , खलखलपन में , ( यहाँ पर मैं उन विद्वान भारतीय ...
Часто встречающиеся слова и выражения
अपना अपनी अपने अब आज आदि आनन्द इस इसी उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक कभी कर करता है करती करते करने कर्म कला कवि कवि ने का काम कामायनी काव्य किन्तु किया है किसी की की ओर कुछ के रूप के लिए केवल कोई क्या गई गया चित्र चिन्ता जब जा जाता है जाती जिस जीवन जो ज्ञान तक तथा तुम तो था थी थे दर्शन दिया देख देता देती है नहीं नारी नियति पति पर प्रकृति प्रसाद जी ने प्रेम फिर बन भाव भी भीतर मनु को महाकाव्य मानव में में ही मैं यह यही या रस रहा है रही रहे रूप रूप में ले लेकिन वर्णन वह वासना विश्व वे शिव श्रद्धा के संस्कृति सकता सत्य सब सर्ग में सा साहित्य सी सीता सुख सुन्दर सृष्टि से सौन्दर्य ही हुआ हुआ है हुई हुए हूँ हृदय है और है कि हैं हो होकर होता है