Kāmāyanī ke panneNavayuga Granthāgāra, 1962 - Всего страниц: 207 |
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Стр. 11
... तथा चेतन सब समरस अवस्था में हैं । यह मार्ग मानवता के कल्याण की ओर संकेत करता है और जिसकी आधारशिला श्रद्धा हैं । इस सर्ग में बुद्धि ...
... तथा चेतन सब समरस अवस्था में हैं । यह मार्ग मानवता के कल्याण की ओर संकेत करता है और जिसकी आधारशिला श्रद्धा हैं । इस सर्ग में बुद्धि ...
Стр. 22
... तथा इड़ा पर एकाधिकार का प्रयत्न और इस पर प्रजा का मनु के विरुद्ध होना एवं देवताओं का कुपित होना शतपथ के आधार पर वर्णित है । सारस्वत ...
... तथा इड़ा पर एकाधिकार का प्रयत्न और इस पर प्रजा का मनु के विरुद्ध होना एवं देवताओं का कुपित होना शतपथ के आधार पर वर्णित है । सारस्वत ...
Стр. 205
... तथा निबन्ध हैं । उनके ग्रन्थ- काव्य - चित्राधार , कानन कुसुम , महाराणा को महत्व , प्रेम - पथिक , झरना एवं आँसू और लहर । महाकाव्य ...
... तथा निबन्ध हैं । उनके ग्रन्थ- काव्य - चित्राधार , कानन कुसुम , महाराणा को महत्व , प्रेम - पथिक , झरना एवं आँसू और लहर । महाकाव्य ...
Часто встречающиеся слова и выражения
अपना अपनी अपने अब आज आदि आनन्द इस इसी उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक कभी कर करता है करती करते करने कर्म कला कवि कवि ने का काम कामायनी काव्य किन्तु किया है किसी की की ओर कुछ के रूप के लिए केवल कोई क्या गई गया चित्र चिन्ता जब जा जाता है जाती जिस जीवन जो ज्ञान तक तथा तुम तो था थी थे दर्शन दिया देख देता देती है नहीं नारी नियति पति पर प्रकृति प्रसाद जी ने प्रेम फिर बन भाव भी भीतर मनु को महाकाव्य मानव में में ही मैं यह यही या रस रहा है रही रहे रूप रूप में ले लेकिन वर्णन वह वासना विश्व वे शिव श्रद्धा के संस्कृति सकता सत्य सब सर्ग में सा साहित्य सी सीता सुख सुन्दर सृष्टि से सौन्दर्य ही हुआ हुआ है हुई हुए हूँ हृदय है और है कि हैं हो होकर होता है