Kāmāyanī ke panneNavayuga Granthāgāra, 1962 - Всего страниц: 207 |
Результаты поиска по книге
Результаты 1 – 3 из 39
Стр. 7
... जिस काव्यात्मक ढंग से कवि ने किया है , वह अद्वितीय है । मनु और श्रद्धा के बीच जो वार्तालाप कराया गया है वह सहज , सरल और भारतीय आदर्श ...
... जिस काव्यात्मक ढंग से कवि ने किया है , वह अद्वितीय है । मनु और श्रद्धा के बीच जो वार्तालाप कराया गया है वह सहज , सरल और भारतीय आदर्श ...
Стр. 180
... सृष्टि यज्ञ यह यज्ञ पुरुष संसृति सेवा उसे विकसने का जो है ; भाग हमारा को है ! जिस कर्म में मंगल भावना नहीं है , वह कर्म [ १८० ]
... सृष्टि यज्ञ यह यज्ञ पुरुष संसृति सेवा उसे विकसने का जो है ; भाग हमारा को है ! जिस कर्म में मंगल भावना नहीं है , वह कर्म [ १८० ]
Стр. 207
... जिस प्रकार का एक कौवा और एक कोयल में । साहित्य में जीवन , स्पन्दन और उसकी लहर और तरंग वर्तमान रहती है , जो आने वाले युग की भी प्रोफेसी ...
... जिस प्रकार का एक कौवा और एक कोयल में । साहित्य में जीवन , स्पन्दन और उसकी लहर और तरंग वर्तमान रहती है , जो आने वाले युग की भी प्रोफेसी ...
Часто встречающиеся слова и выражения
अपना अपनी अपने अब आज आदि आनन्द इस इसी उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक कभी कर करता है करती करते करने कर्म कला कवि कवि ने का काम कामायनी काव्य किन्तु किया है किसी की की ओर कुछ के रूप के लिए केवल कोई क्या गई गया चित्र चिन्ता जब जा जाता है जाती जिस जीवन जो ज्ञान तक तथा तुम तो था थी थे दर्शन दिया देख देता देती है नहीं नारी नियति पति पर प्रकृति प्रसाद जी ने प्रेम फिर बन भाव भी भीतर मनु को महाकाव्य मानव में में ही मैं यह यही या रस रहा है रही रहे रूप रूप में ले लेकिन वर्णन वह वासना विश्व वे शिव श्रद्धा के संस्कृति सकता सत्य सब सर्ग में सा साहित्य सी सीता सुख सुन्दर सृष्टि से सौन्दर्य ही हुआ हुआ है हुई हुए हूँ हृदय है और है कि हैं हो होकर होता है