Kāmāyanī ke panneNavayuga Granthāgāra, 1962 - Всего страниц: 207 |
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Стр. 37
... किसी निर्जन- एकान्त में कोई भी व्यक्ति किसी लम्बे अरसे से एक 1 अकेला जीवन कभी चिन्ता में , कभी सुख में , कभी दुख में , कभी आशा में , कभी ...
... किसी निर्जन- एकान्त में कोई भी व्यक्ति किसी लम्बे अरसे से एक 1 अकेला जीवन कभी चिन्ता में , कभी सुख में , कभी दुख में , कभी आशा में , कभी ...
Стр. 64
... किसी के -सामने भी झुकना नहीं जानती वरन् औरों को अपने सामने झुकाती है । वह स्वावलम्बिनी है | वह अपने ही ऊपर निर्भर रहती है , किसी ...
... किसी के -सामने भी झुकना नहीं जानती वरन् औरों को अपने सामने झुकाती है । वह स्वावलम्बिनी है | वह अपने ही ऊपर निर्भर रहती है , किसी ...
Стр. 181
... किसी को भी विकास पथ पर नहीं ला सकता । कर्म करने के पूर्व समाज से अपने को मिला देना आवश्यक है तभी वह कर्म मानवता की प्रगति कर सकेगा ...
... किसी को भी विकास पथ पर नहीं ला सकता । कर्म करने के पूर्व समाज से अपने को मिला देना आवश्यक है तभी वह कर्म मानवता की प्रगति कर सकेगा ...
Часто встречающиеся слова и выражения
अपना अपनी अपने अब आज आदि आनन्द इस इसी उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक कभी कर करता है करती करते करने कर्म कला कवि कवि ने का काम कामायनी काव्य किन्तु किया है किसी की की ओर कुछ के रूप के लिए केवल कोई क्या गई गया चित्र चिन्ता जब जा जाता है जाती जिस जीवन जो ज्ञान तक तथा तुम तो था थी थे दर्शन दिया देख देता देती है नहीं नारी नियति पति पर प्रकृति प्रसाद जी ने प्रेम फिर बन भाव भी भीतर मनु को महाकाव्य मानव में में ही मैं यह यही या रस रहा है रही रहे रूप रूप में ले लेकिन वर्णन वह वासना विश्व वे शिव श्रद्धा के संस्कृति सकता सत्य सब सर्ग में सा साहित्य सी सीता सुख सुन्दर सृष्टि से सौन्दर्य ही हुआ हुआ है हुई हुए हूँ हृदय है और है कि हैं हो होकर होता है