Kāmāyanī ke panneNavayuga Granthāgāra, 1962 - Всего страниц: 207 |
Результаты поиска по книге
Результаты 1 – 3 из 27
Стр. 107
... कला ? पश्चिम में कला ने जो अपना स्वरूप पकड़ा , — कला कला के लिए - वह बड़ा विचित्र है , उनके यहाँ कला के पाँच भेद सर्वमान्य है : और उक्त ...
... कला ? पश्चिम में कला ने जो अपना स्वरूप पकड़ा , — कला कला के लिए - वह बड़ा विचित्र है , उनके यहाँ कला के पाँच भेद सर्वमान्य है : और उक्त ...
Стр. 108
... कलाओं की जो कल्पना की गई है , वह कामाश्रय के अन्तर्गत ही है - " नृत्यगतिप्रभूतयः कला कामार्थसंश्रयाः । इत्थं कला चतु : षष्ठि विरोध ...
... कलाओं की जो कल्पना की गई है , वह कामाश्रय के अन्तर्गत ही है - " नृत्यगतिप्रभूतयः कला कामार्थसंश्रयाः । इत्थं कला चतु : षष्ठि विरोध ...
Стр. 120
... कला के भीतर मानव - जीवन झाँक रहा है | काव्य में कला का सौन्दर्य तभी है जबकि कवि समाज रस का परदा सामने लाकर डाल दे और एक आदर्श की दीवार ...
... कला के भीतर मानव - जीवन झाँक रहा है | काव्य में कला का सौन्दर्य तभी है जबकि कवि समाज रस का परदा सामने लाकर डाल दे और एक आदर्श की दीवार ...
Часто встречающиеся слова и выражения
अपना अपनी अपने अब आज आदि आनन्द इस इसी उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक कभी कर करता है करती करते करने कर्म कला कवि कवि ने का काम कामायनी काव्य किन्तु किया है किसी की की ओर कुछ के रूप के लिए केवल कोई क्या गई गया चित्र चिन्ता जब जा जाता है जाती जिस जीवन जो ज्ञान तक तथा तुम तो था थी थे दर्शन दिया देख देता देती है नहीं नारी नियति पति पर प्रकृति प्रसाद जी ने प्रेम फिर बन भाव भी भीतर मनु को महाकाव्य मानव में में ही मैं यह यही या रस रहा है रही रहे रूप रूप में ले लेकिन वर्णन वह वासना विश्व वे शिव श्रद्धा के संस्कृति सकता सत्य सब सर्ग में सा साहित्य सी सीता सुख सुन्दर सृष्टि से सौन्दर्य ही हुआ हुआ है हुई हुए हूँ हृदय है और है कि हैं हो होकर होता है