Kāmāyanī ke panneNavayuga Granthāgāra, 1962 - Всего страниц: 207 |
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Стр. 39
... सकता है और न देख ही सकता है | उसके स्वार्थं के सामने कोई भी वस्तु कुछ नहीं । जबर्दस्त अहंकार उसको दबाये हुए है | श्रद्धा को साथ में ...
... सकता है और न देख ही सकता है | उसके स्वार्थं के सामने कोई भी वस्तु कुछ नहीं । जबर्दस्त अहंकार उसको दबाये हुए है | श्रद्धा को साथ में ...
Стр. 108
... सकता , वरन् दोनों को एक बात्मा का स्वरूप देकर ही देखा और समझा जा सकता है । प्रसाद जी आनन्द ( Bliss ) के पोषक हैं । ' आनन्द ' से उनका ...
... सकता , वरन् दोनों को एक बात्मा का स्वरूप देकर ही देखा और समझा जा सकता है । प्रसाद जी आनन्द ( Bliss ) के पोषक हैं । ' आनन्द ' से उनका ...
Стр. 130
... सकता । कैसे हो ? क्या हो ? इसका तो भार विचार न सह सकता । हे विराट् ! हे विश्वदेव ! तुम कुछ हो ऐसा होता भान । कवि उस आवरण को खोल देना ...
... सकता । कैसे हो ? क्या हो ? इसका तो भार विचार न सह सकता । हे विराट् ! हे विश्वदेव ! तुम कुछ हो ऐसा होता भान । कवि उस आवरण को खोल देना ...
Часто встречающиеся слова и выражения
अपना अपनी अपने अब आज आदि आनन्द इस इसी उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक कभी कर करता है करती करते करने कर्म कला कवि कवि ने का काम कामायनी काव्य किन्तु किया है किसी की की ओर कुछ के रूप के लिए केवल कोई क्या गई गया चित्र चिन्ता जब जा जाता है जाती जिस जीवन जो ज्ञान तक तथा तुम तो था थी थे दर्शन दिया देख देता देती है नहीं नारी नियति पति पर प्रकृति प्रसाद जी ने प्रेम फिर बन भाव भी भीतर मनु को महाकाव्य मानव में में ही मैं यह यही या रस रहा है रही रहे रूप रूप में ले लेकिन वर्णन वह वासना विश्व वे शिव श्रद्धा के संस्कृति सकता सत्य सब सर्ग में सा साहित्य सी सीता सुख सुन्दर सृष्टि से सौन्दर्य ही हुआ हुआ है हुई हुए हूँ हृदय है और है कि हैं हो होकर होता है