Kāmāyanī ke panneNavayuga Granthāgāra, 1962 - Всего страниц: 207 |
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Стр. 15
... यही श्रद्धा ' कामायनी ' में लोक कल्याणी श्रद्धा और लोकमंगला श्रद्धा के रूप में मुखरित हुई है । | गीतकार ने ज्ञानी उसे ही कहा है जो कि ...
... यही श्रद्धा ' कामायनी ' में लोक कल्याणी श्रद्धा और लोकमंगला श्रद्धा के रूप में मुखरित हुई है । | गीतकार ने ज्ञानी उसे ही कहा है जो कि ...
Стр. 16
... यही कारण है कि ' कामायनी ' साधारण जन के लिए दुरूह सी हो गई है ; किन्तु यह कहना कि ' कामायनी ' की कथा वृहत् नहीं , युक्ति संगत या तर्क ...
... यही कारण है कि ' कामायनी ' साधारण जन के लिए दुरूह सी हो गई है ; किन्तु यह कहना कि ' कामायनी ' की कथा वृहत् नहीं , युक्ति संगत या तर्क ...
Стр. 162
... यही भूया का मधुमय दान ' कह कर वह काम को सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त देखती है और श्रद्धा का यही काम लोक - मंगल की भावना भी रखता है ...
... यही भूया का मधुमय दान ' कह कर वह काम को सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त देखती है और श्रद्धा का यही काम लोक - मंगल की भावना भी रखता है ...
Часто встречающиеся слова и выражения
अपना अपनी अपने अब आज आदि आनन्द इस इसी उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक कभी कर करता है करती करते करने कर्म कला कवि कवि ने का काम कामायनी काव्य किन्तु किया है किसी की की ओर कुछ के रूप के लिए केवल कोई क्या गई गया चित्र चिन्ता जब जा जाता है जाती जिस जीवन जो ज्ञान तक तथा तुम तो था थी थे दर्शन दिया देख देता देती है नहीं नारी नियति पति पर प्रकृति प्रसाद जी ने प्रेम फिर बन भाव भी भीतर मनु को महाकाव्य मानव में में ही मैं यह यही या रस रहा है रही रहे रूप रूप में ले लेकिन वर्णन वह वासना विश्व वे शिव श्रद्धा के संस्कृति सकता सत्य सब सर्ग में सा साहित्य सी सीता सुख सुन्दर सृष्टि से सौन्दर्य ही हुआ हुआ है हुई हुए हूँ हृदय है और है कि हैं हो होकर होता है