Kāmāyanī ke panneNavayuga Granthāgāra, 1962 - Всего страниц: 207 |
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Стр. 33
... कुछ - कुछ भान भी होने लगता है कि ह्रीं वह कोई है : हे विराट् ! हे विश्वदेव ! तुम कुछ हो ऐसा होता भान । मनु के सोचने की क्रिया बन्द नहीं ...
... कुछ - कुछ भान भी होने लगता है कि ह्रीं वह कोई है : हे विराट् ! हे विश्वदेव ! तुम कुछ हो ऐसा होता भान । मनु के सोचने की क्रिया बन्द नहीं ...
Стр. 123
... कुछ भी न अपना सकी । बाहरी तौर से उसने मुस्लिम संस्कृति का साथ दिया लेकिन भीतर से वह वही बनी रही जैसी कि वह थी । अतः यह कहना निर्मूल ...
... कुछ भी न अपना सकी । बाहरी तौर से उसने मुस्लिम संस्कृति का साथ दिया लेकिन भीतर से वह वही बनी रही जैसी कि वह थी । अतः यह कहना निर्मूल ...
Стр. 130
... कुछ - कुछ आभास होने लग गया है : - हे अनन्त रमणीय ! कौन तुम ? यह मैं कैसे कह सकता । कैसे हो ? क्या हो ? इसका तो भार विचार न सह सकता । हे ...
... कुछ - कुछ आभास होने लग गया है : - हे अनन्त रमणीय ! कौन तुम ? यह मैं कैसे कह सकता । कैसे हो ? क्या हो ? इसका तो भार विचार न सह सकता । हे ...
Часто встречающиеся слова и выражения
अपना अपनी अपने अब आज आदि आनन्द इस इसी उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक कभी कर करता है करती करते करने कर्म कला कवि कवि ने का काम कामायनी काव्य किन्तु किया है किसी की की ओर कुछ के रूप के लिए केवल कोई क्या गई गया चित्र चिन्ता जब जा जाता है जाती जिस जीवन जो ज्ञान तक तथा तुम तो था थी थे दर्शन दिया देख देता देती है नहीं नारी नियति पति पर प्रकृति प्रसाद जी ने प्रेम फिर बन भाव भी भीतर मनु को महाकाव्य मानव में में ही मैं यह यही या रस रहा है रही रहे रूप रूप में ले लेकिन वर्णन वह वासना विश्व वे शिव श्रद्धा के संस्कृति सकता सत्य सब सर्ग में सा साहित्य सी सीता सुख सुन्दर सृष्टि से सौन्दर्य ही हुआ हुआ है हुई हुए हूँ हृदय है और है कि हैं हो होकर होता है