Kāmāyanī ke panneNavayuga Granthāgāra, 1962 - Всего страниц: 207 |
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Стр. 171
... कर्म पर भी विचार करना आवश्यक है । कर्म से अभिप्राय है जीवन प्रेरित चेष्टाएँ । मनुष्य कर्म करता है अपने सुख के लिए , अपने जीवन के लिए ...
... कर्म पर भी विचार करना आवश्यक है । कर्म से अभिप्राय है जीवन प्रेरित चेष्टाएँ । मनुष्य कर्म करता है अपने सुख के लिए , अपने जीवन के लिए ...
Стр. 180
... कर्म करना और क्या शवता ! वह भी हिंसापूर्ण , कितना नीच कर्म मनु अपनाता जा रहा है , श्रद्धा को है ! कर्म का यह व्यष्टि रूप जिसे प्रिय ...
... कर्म करना और क्या शवता ! वह भी हिंसापूर्ण , कितना नीच कर्म मनु अपनाता जा रहा है , श्रद्धा को है ! कर्म का यह व्यष्टि रूप जिसे प्रिय ...
Стр. 181
Bhuvana Canda Pāṇḍeya. जिस कर्म में मंगल भावना नहीं है , वह कर्म किसी काम का नहीं । जब कर्म समाज को लेकर चलता है तो वही मानवता के विकास को भी ...
Bhuvana Canda Pāṇḍeya. जिस कर्म में मंगल भावना नहीं है , वह कर्म किसी काम का नहीं । जब कर्म समाज को लेकर चलता है तो वही मानवता के विकास को भी ...
Часто встречающиеся слова и выражения
अपना अपनी अपने अब आज आदि आनन्द इस इसी उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक कभी कर करता है करती करते करने कर्म कला कवि कवि ने का काम कामायनी काव्य किन्तु किया है किसी की की ओर कुछ के रूप के लिए केवल कोई क्या गई गया चित्र चिन्ता जब जा जाता है जाती जिस जीवन जो ज्ञान तक तथा तुम तो था थी थे दर्शन दिया देख देता देती है नहीं नारी नियति पति पर प्रकृति प्रसाद जी ने प्रेम फिर बन भाव भी भीतर मनु को महाकाव्य मानव में में ही मैं यह यही या रस रहा है रही रहे रूप रूप में ले लेकिन वर्णन वह वासना विश्व वे शिव श्रद्धा के संस्कृति सकता सत्य सब सर्ग में सा साहित्य सी सीता सुख सुन्दर सृष्टि से सौन्दर्य ही हुआ हुआ है हुई हुए हूँ हृदय है और है कि हैं हो होकर होता है