Hindī-kāvya meṃ niyativādaKitāba Mahala, 1964 - Всего страниц: 384 |
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Стр. 194
... वे यह भी जानते हैं कि ईश्वर अन्तर्यामी होने के कारण जीव के समस्त कर्मों को पहचानता है । इसलिए उनका कथन है कि : मो सो पतित न और हरे ...
... वे यह भी जानते हैं कि ईश्वर अन्तर्यामी होने के कारण जीव के समस्त कर्मों को पहचानता है । इसलिए उनका कथन है कि : मो सो पतित न और हरे ...
Стр. 201
... वे दुर्दिन का प्रकोप धैर्यपूर्वक सहन कर सकते हैं , किन्तु उन्हें सबसे बड़ा दुख इस बात का है कि जब दुर्दिन आते हैं , तब वे हितैषी भी ...
... वे दुर्दिन का प्रकोप धैर्यपूर्वक सहन कर सकते हैं , किन्तु उन्हें सबसे बड़ा दुख इस बात का है कि जब दुर्दिन आते हैं , तब वे हितैषी भी ...
Стр. 305
... वे किसी अन्य सत्ता का अंकुश नहीं देखते । तभी तो वे कुतूहल- युक्त एवं चमत्कृत हो रहे हैं : नई इच्छा खींच लाती , अतिथि का संकेत -- चल रहा ...
... वे किसी अन्य सत्ता का अंकुश नहीं देखते । तभी तो वे कुतूहल- युक्त एवं चमत्कृत हो रहे हैं : नई इच्छा खींच लाती , अतिथि का संकेत -- चल रहा ...
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Часто встречающиеся слова и выражения
अतः अनेक अपनी अपने अभिव्यक्ति आदि इस इस प्रकार ई० ईश्वर उनका उनकी उनके उन्हें उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक एवं ओर और कबीर कर करके करता है करती करते करने कर्म कर्मों कवि कहते हैं का काल काव्य में किन्तु किया है किसी की कुछ के कारण के लिए के साथ को कोई गई गति गया है छंद जब जा जाता है जाती जीव के जीवन जो तक तथा तब तो था थी थे दिया दुख नहीं नियति नियतिवाद नियतिवाद की ने पर पृष्ठ प्रभाव प्राप्त फल भवितव्यता भाग भाग्य भारत भारतीय भावना भी भोग मनुष्य में नियतिवाद यह या रहा राम रामचरितमानस वह वही वाले वि० विधाता विधि विभिन्न विश्वास वे शक्ति सकता सब समय समस्त साहित्य सीता से स्थान हम हिन्दी हिन्दी साहित्य ही हुआ हुई हुए है और है कि है तथा हो होता है होती होते होने